दुखद घटनाओं के सदमें से नहीं निकल पा रहे हैं बाहर? कहीं आप तो नहीं हो गए हैं इस गंभीर समस्या के शिकार

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Post traumatic Stress disorder symptoms
Post traumatic Stress disorder symptoms

Post-traumatic Stress disorder: हर व्यक्ति के जीवन कोई ना कोई दुखद घटना घटती है। जिसे भूलना व्यक्ति के लिए काफी मुश्किल हो जाता है। कभी व्यक्ति का आर्थिक नुकसान, कभी किसी प्रियजन की मृत्यु जैसी घटनाएं होती हैं। इन घटनाओं से व्यक्ति काफी टूट जाता है। हालांकि, ये घटनाएं कितनी भी दुखद क्यों ना हों, लेकिन व्यक्ति समय के साथ इन बुरी घटनाओं को धीरे-धीरे भूलकर अपनी जिंदगी में आगे बढ़ने की कोशिश करते हैं। वहीं, कुछ ऐसे भी व्यक्ति होते हैं, जो इन घटनाओं को भूल नहीं पाते और बार-बार इन्हीं घटनाओं को याद करते रहते हैॆ। ऐसे लोग इन घटनाओं को लेकर कई दिनों तक उदास रहते हैं। इन लोगों को सदमें से बाहर निकालना काफी मुश्किल हो जाता है।

व्यक्ति के इसी समस्या को ‘पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर’ (Post-traumatic Stress disorder) कहते हैं। कई अध्ययन में इस बात का खुलासा किया गया है कि दंगों और युद्ध से प्रभावित इलाकों में रहने वाले लोग इस मानसिक स्थिति से अधिक पीड़ित होते हैं। रिसर्च में बताया गया है कि व्यक्ति के मस्तिष्क का खास हिस्सा हिप्पोकैंपस है, हमारी भावनाओं (Emotion) को कंट्रोल करने में हमारी मदद करता है। जिन लोगों के हिप्पोकैंपस का आकार छोटा होता है, वे व्यक्ति पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर के जल्दी शिकार हो सकते हैं। चलिए आज हम जानते हैं पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर के लक्षण, कारण और उपचार के बारे में-

किन वजहों से बढ़ता है पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर का खतरा?

कई कारणों से पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर बढ़ सकता है। पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर होने के कुछ ऐसे कारण हैं जिनकी वजह से इसकी परेशानी अधिक बढ़ती है। उन कारणों में शामिल है-

  • लंबे समय से सदमे में रहना।
  • भावुक (Emotional) महसूस करना।
  • मिलिट्री या कोई अपने किसी अन्य पेशे के कारण हमेशा परेशान रहना।
  • हमेशा दोस्तों और अपनी फैमली से पॉजिटिव रिस्पॉन्स रखना।
  • एंग्जाइटी और डिप्रेशन की परेशानी।
  • मेंटल हेल्थ प्रॉब्लम से पीड़ित परिवार में रहने की वजह।
  • पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (Post-traumatic Stress Disorder) से अगर ब्लड
  • रिलेशन में कोई पीड़ित है तो ऐसी स्थिति में PTSD का खतरा ज्यादा होता है।

जीवनशैली में बदलाव के कारण पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर जैसी परेशानी हो सकती है। PTSD की सम्या बढ़ने के पीछे निम्नलिखित कारण हो सकते हैं:

  • बचपन में परिवार द्वारा नजरअंदाज किए गए बच्चे पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर के शिकार हो सकते हैं।
  • कॉम्बैट एक्सपोजर।
  • शारीरिक आघात हुआ हो।
  • डराया या धमकाया गया व्यक्ति हो।

इसके अलावा कई अन्य ऐसी घटनाएं भी हैं, जिसकी वजह से व्यक्ति PTSD की समस्या के शिकार हो सकते हैं। जैसे- कार दुर्घटना, प्राकृतिक आपदा, अपहरण, विमान दुर्घटना, आतंकवादी हमला या फिर ऐसी ही कोई अन्य घटनाओं की वजह से व्यक्ति पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (Post-traumatic Stress Disorder) के शिकार हो सकते हैं।

पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर के लक्षण (Symptoms of Post-traumatic Stress disorder)

  • उन्हीं घटनाओं के बारे में सोचना।
  • दुखद घटनाओं के दृश्य बार-बार याद आना।
  • नींद में चौंकना।
  • दुर्घटना के अनुभवों को बार-बार महसूस करना।
  • सपनें में भी उन्हीं घटनाओं को लेकर रोना।
  • नींद, भूख और प्यास में कमी।
  • दोबारा ऐसी घटना होने की आशंका रहना।
  • छोटी-छोटी बातों को लेकर परेशान होना।
  • नकारात्मक मनोदशा।

उपचार (Treatment of Post-traumatic Stress Disorder)

  • पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर ( Post-traumatic Stress Disorder ) से पीड़ित मरीजों में नींद की कमी अधिक होती हैं। ऐसे मरीजों को भूख नहीं लगती है। मनोवैज्ञानिकों द्वारा इन मरीजों को साइकोथेरेपी दी जाती है। इसके साथ-साथ मरीजों को कुछ दवाइयां भी देते हैं।
  • सपोर्टिव टॉक थेरेपी यानी सकारात्मक बातचीत से भी ऐसे मरीजों का मनोबल बढ़ाया जाता है।
  • इसके साथ ही मनोवैज्ञानिक कुछ खास रिलैक्सेशन एक्सरसाइज भी कराते हैं। ताकि मरीजों को मेंटल ट्रॉमा से बाहर निकाला जा सके।
  • मनोवैज्ञानिकों द्वारा उपचार और काउंसलिंग के बाद आप मरीज में सकारात्मक बदलाव देख सकते हैं।

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