Coronavirus Mouthwash: कोरोनावायरस के फैलते संक्रमण के बीच कई वैज्ञानिक और डॉक्टर्स इस वायरस से निपटने के लिए दवाई बनाने में जुटे हुए हैं। इसके साथ ही (Coronavirus Mouthwash) कोरोनावायरस से बचने के लिए विभिन्न उपाय की तलाश कर रहे हैं, जिससे बढ़ते कोरोनावायरस को रोका जा सके। इस बात से सभी वाकिफ हैं कि कोरोना वायरस नाक, मुंह और आंख के रास्ते व्यक्ति के अंदर प्रवेश करता है और फिर गले से होते हुए व्यक्ति के फेफड़ों तक पहुंचकर उसे संक्रमित करता है। फेफड़ों में कोरोनावायरस का संक्रमण फैलने से मरीज को सांस लेने में परेशानी होने लगती है, जिसके बाद रोगी को वेंटिलेटर की जरूरत पड़ती है। कोरोना से बचने के लिए आय दिन नए-नए उपाय बताए जा रहे हैं। इसी बीच एक और रिसर्च सामने आया है, जिसमें कहा गया है कि माउथवॉश से कोरोनावायरस को गंभीर होने से रोका जा सकता है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि माउथवॉश करने के दौरान कोरोनावायरस नष्ट हो जाते हैं।
डेली मेल की रिपोर्ट के अनुसार, शोधकर्ताओं का कहना है कि माउथवॉश करने से कोरोनावायरस को फैलने से पहले नष्ट किया जा सकता है। इन शोधकर्ताओं का तर्क है कि कोरोनावायरस के बाहरी हिस्से पर फैट की लेयर होती है, जिसे केमिकल्स से नष्ट किया जा सकता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि माउथवॉश करने से कोरोनावायरस के ऊपरी लेयर नष्ट किया जा सकता है। इससे वायरस मुंह और गले में रेप्लिकेशन नहीं कर सकता है। यानी यह इसका स्वरूप अधिक बड़ा नहीं हो सकता है।
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इस रिसर्च में कहा गया है कि टेस्ट ट्यूब और सीमित प्रयोग में इस बात का पता चला है कि माउथवॉश से वायरस को खत्म किया जा सकता है। उनके मुताबिक, माउथवॉश में इस्तेमाल किए जाने वाले केमिकल्स, लिपिड्स को टारगेट करते हैं। लिपिड्स वायरस के बाहरी परत में पाए जाते हैं, जिन्हें माउथवॉश के जरिए हम आसानी से नष्ट कर सकते हैं। हालांकि, इसका अबतक कोई पुख्ता सबूत नहीं मिला है कि माउथवॉश से कोरोनावायरस के लेयर को खत्म कर सकते हैं या नहीं?
और अधिक रिसर्च की जरूरत
शोधकर्ताओं और वैज्ञानिकों का कहना है कि माउथवॉश करने से कोरोनावायरस के लेयर को किस स्तर तक नष्ट किया जा सकता है, इसके लिए और अधिक रिसर्च की जरूरत है। रिसर्चर्स का कहना है कि माउथवॉश में इस्तेमाल होने वाले केमिकल्स पर रिसर्च होना चाहिए।
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शोधकर्ताओं की टीम में लिपिड साइंटिस्ट, वायरॉलजिस्ट और हेल्थकेयर एक्सपर्ट्स शामिल थे। यह रिसर्च कार्डिफ यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ मेडिसिन और नॉटिंघम, कोलोराडो, ओटावा, बार्सिलोना और कैंब्रिज इंस्टिट्यूट ने मिलकर किया है।